निवेश और अर्थव्यवस्था

प्रश्न – भारत के आर्थिक वृद्धि में योगदान करने हेतु ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में नीतिगत सुधारों, निवेश में सुगमता तथा व्यवसाय करने में सुगमता पर सरकार द्वारा किए गए उपायों की विवेचना कीजिए।
प्रश्न निवेश और अर्थव्यवस्था निवेश और अर्थव्यवस्था – भारत के आर्थिक वृद्धि में योगदान करने हेतु ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में नीतिगत सुधारों, निवेश में सुगमता तथा व्यवसाय करने में सुगमता पर सरकार द्वारा किए गए उपायों की विवेचना कीजिए। – 28 May 2021
उत्तर – भारत के आर्थिक वृद्धि
1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा भारत में FDI को FEMA के तहत लाया गया था। भारत जैसे देश के लिए, FDI एक आर्थिक सहायता की तरह है जो देश को किसी भी कर्ज में बांधे बिना, विकास के नए आयाम का मार्ग प्रशस्त करती है। FDI से हमारा तात्पर्य केवल धन से ही नहीं बल्कि कौशल, प्रक्रिया, प्रबंधन, प्रौद्योगिकी आदि से भी है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक समूह द्वारा किसी एक देश के व्यवसाय या निगम में स्थायी निवेश और अर्थव्यवस्था हित स्थापित करने के इरादे से किया गया निवेश है। यह आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक है, और देश में आर्थिक विकास के लिए गैर-ऋण वित्त का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। एफडीआई घरेलू अर्थव्यवस्था में नई पूंजी, नई तकनीक और रोजगार के अवसर लाता है।
वर्तमान में सरकार ने रक्षा क्षेत्र, दवाओं और चिकित्सा क्षेत्र, नागरिक उड्डयन और खाद्य क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी है। एफडीआई को बढ़ावा देने से न केवल निवेश बढ़ेगा, बल्कि उत्पादन के क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए नई तकनीकों को भी शामिल किया जाएगा। प्रौद्योगिकियों के उपयोग से वाणिज्य और कृषि उत्पादों का महान विकास होगा, जिससे रोजगार बढ़ेगा और नागरिकों की आय में वृद्धि होगी और देश की अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी।
विदेशी कंपनियों को कम वेतन पर भारत में अधिक काम मिल रहा है, जिससे वे भारत में निवेश की नई संभावनाएं तलाश रही हैं। वहीं सरकार द्वारा निवेश में दी जा रही सुविधा भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रही है। आज भारत एफडीआई के लिए निवेशकों का पसंदीदा गंतव्य बन गया है। दूरसंचार, निर्माण-कार्य, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जो काफी विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं। भारत की उदार एफडीआई नीति, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकार द्वारा किए गए संरचनात्मक सुधार और तेजी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार उनमें से कई कारण हैं, जो भारत को अन्य देशों की तुलना में एफडीआई के लिए अधिक आकर्षक बनाते हैं।
एफडीआई बढ़ाने के लिए सरकार के प्रयास:
- वर्ष 2020 में, इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्षेत्र में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए, ‘उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन-पीएलआई’ जैसी योजनाओं को अधिसूचित किया गया है।
- वर्ष 2019 में, कोयला खनन गतिविधियों में स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति देने निवेश और अर्थव्यवस्था के लिए केंद्र सरकार द्वारा FDI नीति 2017 में संशोधन किया गया था।
- इसके अलावा सरकार की ओर से डिजिटल क्षेत्र में 26% FDI की अनुमति दी गई है। इस क्षेत्र में भारत में अनुकूल जनसांख्यिकी, पर्याप्त मोबाइल और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के कारण, उच्च एफडीआई की संभावना है। यह बड़े पैमाने पर खपत और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ विदेशी निवेशकों को भारत में एक बड़े और आशाजनक बाजार प्रदान करने का अवसर प्रदान करता है।
- विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल-एफआईएफपी निवेशकों को एफडीआई की सुविधा प्रदान करने के निवेश और अर्थव्यवस्था लिए भारत सरकार का एक ऑनलाइन एकल बिंदु इंटरफेस है। यह ‘उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय’, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि की उम्मीदें:
- हाल के दिनों में विदेशी निवेशकों ने ट्रेन के निजी संचालन, और हवाई अड्डों के निर्माण के लिए बोली लगाने की प्रक्रिया की अनुमति देने के सरकार के कदम में रुचि दिखाई। इसी तरह, मार्च 2020 में, अनिवासी भारतीयों- एनआरआई को सरकार द्वारा एयर इंडिया में 100% हिस्सेदारी प्राप्त करने की अनुमति दी गई है।
- सरकार द्वारा मई 2020 में रक्षा निर्माण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्वचालित मार्ग के तहत FDI की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी गई है। सरकार का यह कदम आगे भी बड़े निवेश को आकर्षित कर सकता है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आर्थिक विकास के लिए एक प्रमुख प्रेरक शक्ति है, इसलिए एक मजबूत और आसानी से सुलभ एफडीआई सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस प्रकार महामारी के बाद की अवधि में आर्थिक विकास और भारत का बाजार देश निवेश और अर्थव्यवस्था में बड़े निवेश को आकर्षित करेगा।
बचत दर 15 साल के निचले स्तर पर, जानिए अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर
देश की कुल बचत में हाउसहोल्ड सेविंग्स की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है. यह अलग बात है कि भारत ब्राजील जैसे अपने समकक्ष उभरते बाजारों की तुलना में अब भी ज्यादा बेहतर स्थिति में है.
अर्थशास्त्री बचत दर में गिरावट के पीछे अर्थव्यवस्था में मौजूदा सुस्ती को भी जिम्मेदार बताते हैं.
एचएसबीसी में चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी ने कहा, ''अगर किसी देश को टिकाऊ ग्रोथ चाहिए तो उसे निवेश की दर बढ़ानी होगी. लेकिन, निवेश के लिए फंडिंग की जरूरत होती है.'' उन्होंने कहा, ''अगर परिवार की बचत में गिरावट आती है तो सरकार को बाहरी स्रोतों से फंड जुटाना होगा.''
वित्त वर्ष 2018-19 में देश की ग्रॉस सेविंग जीडीपी का 30.1 फीसदी रही. वित्त वर्ष 2011-12 में यह 34.6 फीसदी थी. वहीं, 2007-08 में यह 36 फीसदी थी. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़ों से इसका पता चलता है. इसके पहले 2003-2004 में सबसे कम बचत दर 29 फीसदी रही थी.
क्या होगा असर?
बचत दर का घटना किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. इसमें आई गिरावट के चलते भारतीय निवेश और अर्थव्यवस्था कंपनियों को विदेशी बाजारों से ज्यादा उधार लेना पड़ेगा. यह भारत की आर्थिक स्थिति को कमजोर करेगा. इससे देश की विदेशी उधारी में बढ़ोतरी होगी.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
भंडारी ने कहा कि घटती बचत के दौर में निवेश को बढ़ाने के लिए विदेश से उधारी बढ़ानी होगी. इससे चालू खाते का घाटा बढ़ेगा. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से पता चलता है कि देश की बाहरी उधारी पिछले वित्त वर्ष के दौरान 543 अरब डॉलर रही थी. 2015 में यह 475 अरब डॉलर थी.
अर्थशास्त्री बचत दर में गिरावट के पीछे अर्थव्यवस्था में मौजूदा सुस्ती को भी जिम्मेदार बताते हैं.
अन्य देशों के मुकाबले कहां खड़ा है भारत?
ब्रिक्स देशों में भारत की स्थिति दूसरों से ठीक दिखती है. ब्राजील में बचत दर जीडीपी का 16 फीसदी है. मेक्सिको में यह 23 फीसदी और फिलीपींस में 14.2 फीसदी है. चीन में यह जीडीपी का 46 फीसदी है. विश्व बैंक के आंकड़ों से इसका पता चलता है.
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सऊदी अरब ने भारतीय अर्थव्यवस्था में जताया भरोसा, निवेश योजनाओं पर आगे बढ़ेगा
फरवरी में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने भारत के पेट्रो-रसायन, तेल शोधन, बुनियादी ढांचा, खनन, विनिर्माण , कृषि और कई अन्य क्षेत्रों में कुल 100 अरब डालर (करीब 7,400 अरब रुपये) के बड़े निवेश की योजना की घोषणा की थी.
सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान पिछले साल फरवरी में किया था निवेश का ऐलान (फाइल)
सऊदी अरब (निवेश और अर्थव्यवस्था Saudi Arabia ) ने भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) की ताकत पर भरोसा जताया है. उसने रविवार को कहा कि भारत में निवेश की उसकी योजनाएं तय समय के अनुसार आगे बढेंगी. दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश सऊदी अरब का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना संक्रमण के झटकों से निकल कर आगे बढ़ने की पूरी ताकत और क्षमता मौजूद है. पिछले साल फरवरी में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने भारत के पेट्रो-रसायन, तेल शोधन, बुनियादी ढांचा, खनन, विनिर्माण , कृषि और कई अन्य क्षेत्रों में कुल 100 अरब डालर (करीब 7,400 अरब रुपये) के बड़े निवेश की योजना की घोषणा की थी.
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भारत में सऊदी अरब (Saudi Arabia ) के राजदूत डा सऊद बिन मोहम्मद अल साती कहा कि भारत में निवेश की हमारी योजनाएं सही राह पर चल रही हैं. दोनों देशों में निवेश की प्राथमिकताएं तय करने में लगे हुए हैं. साती ने महामारी के संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने में भारत के उपायों की सराहना की. दोनों देशों की अर्थव्यवस्था सुधरने से क्षेत्र के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसमें महामारी के मौजूदा संकट के असर से उबरने की पूरी क्षमता है.
उन्होंने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की हाल की सऊदी अरब की ऐतिहासिक यात्रा का सीधा उल्लेख किए बिना कहा कि 2019 में सामरिक भागीदारी परिषद के गठन से दोनों देशों के बीज कई क्षेत्रों में सहयोग के नए मार्ग खुले हैं. इसमें प्रतिरक्षा, सुरक्षा और निवेश और अर्थव्यवस्था पर्यटन के क्षेत्र भी शामिल हैं. जनरल नरवणे पिछले सप्ताह वहां गए थे. यह भारतीय सेना के किसी प्रमुख की सऊदी अरब की पहली यात्रा थी. सामरिक भागीदारी परिषद का गठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गत वर्ष अक्टूबर की रियाद यात्रा के समय किया गया था. यह परिषद दोनों पक्ष के बीच रणनीतिक भागीदारियों में प्रगति की समीक्षा करती है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
नीति नवाचार : निवेश के वातावरण से ही होगी सतत आर्थिक वृद्धि
Economic Growth : सरकार को निजी क्षेत्र में निवेश investment के लिए ढांचागत सुधार जारी रखने होंगे। निजी निवेश और नीति की निश्चितता के लिए सकारात्मक वातावरण निश्चित रूप से सतत आर्थिक वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा। विनिवेश नीति और एनएमपी की सफलता की कुंजी है इनका क्रियान्वयन।
राधिका पाण्डेय
(सीनियर फेलो, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी)
भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में चालू वित्त वर्ष की अप्रेल-जून तिमाही के दौरान 20.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी की बड़ी वजह 'बेस इफेक्ट' यानी आधार प्रभाव (आलोच्य तिमाही की मौजूदा और एक वर्ष पूर्व की मुद्रास्फीति में अंतर) रहा, क्योंकि गत वर्ष इसी तिमाही में अर्थव्यवस्था Economy में 24.4 प्रतिशत का संकुचन हुआ था। मुख्यत: विनिर्माण क्षेत्र में 49.6 प्रतिशत और भवन निर्माण क्षेत्र में 68.3 प्रतिशत वृद्धि का जीडीपी वृद्धि को समर्थन मिला है। श्रम प्रधान भवन निर्माण क्षेत्र में वृद्धि अर्थव्यवस्था में रोजगार की स्थिति के लिए लाभदायक हो सकती है।
सरकार का अप्रेल-जुलाई का राजकोषीय घाटा नौ साल के न्यूनतम स्तर पर रहा और इसका मुख्य निवेश और अर्थव्यवस्था कारण जीएसटी संकलन में सुधार रहा। जाहिर है उपभोग में वृद्धि हुई है। इसी अवधि के लिए सरकार घाटे को साल भर के लक्ष्य के 21.3 प्रतिशत तक नियंत्रित करने में कामयाब रही। गत वर्ष इस अवधि के दौरान ही यह घाटा साल भर के लक्ष्य को पार कर गया था। एक ओर जहां राजस्व व्यय एवं पूंजीगत व्यय दोनों में कटौती हुई है, वहीं राजस्व प्राप्ति में वृद्धि आर्थिक गतिविधियों की बहाली को दर्शाता है। पहले चार माह में राजकोषीय स्थिति में सुधार दर्शाता है कि सरकार पूरे साल के लिए राजकोषीय घाटे को 6.8 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य पूरा कर सकती है या फिर उससे भी बेहतर।
पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़े आशा के अनुरूप ही पाए गए। आंकड़ों में देखें तो स्थिर मूल्यों पर 32.38 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर जीडीपी, गत वर्ष इसी अवधि की जीडीपी से ज्यादा रही, लेकिन 2019-20 की पहली तिमाही की तुलना में यह अब भी कम है। यानी अर्थव्यवस्था अब भी महामारी से पूर्व के स्तर पर पूरी तरह नहीं लौटी है। चालू वर्ष की पहली तिमाही की वृद्धि में कृषि क्षेत्र मजबूत सहारा रहा है। रबी की फसल का इसमें जबरदस्त योगदान रहा। वित्त क्षेत्र में भी 3.7% की वृद्धि रही, जबकि गत वर्ष इस अवधि में इसमें 5त्न का संकुचन हुआ था। यह संकेत है कि अर्थव्यवस्था में क्रेडिट वृद्धि की रफ्तार अभी सुस्त है।
उच्च जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों को पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता क्योंकि वे कमजोर आधार पर टिके हैं। तात्पर्य यह है कि जीडीपी वृद्धि दर के आंकड़े उतने प्रभावी नहीं रहेंगे, जैसे-जैसे 'बेस इफेक्ट' कमजोर पड़ेगा। इसलिए सरकार को निजी क्षेत्र में निवेश का माहौल सकारात्मक बनाए रखने के लिए ढांचागत सुधार जारी रखने होंगे। निजी निवेश और नीति की निश्चितता के लिए सकारात्मक वातावरण निश्चित रूप से सतत आर्थिक वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा। विनिवेश नीति के मोर्चे पर सरकार का एजेंडा महत्त्वाकांक्षी है और वह कई मौकों पर कह चुकी है कि देश को निजी क्षेत्र पर भरोसा करने की जरूरत है, न कि संदेह। सरकार ने एलआइसी के आइपीओ और बीपीसीएल के निजीकरण से इस साल 1.75 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। इसी वर्ष दो सरकारी बैंकों व एक सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण की भी योजना है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने 6 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) की घोषणा भी की है, जिसके तहत मौजूदा परिसंपत्तियां परिचालन के लिए निजी क्षेत्र को लीज पर दी जाएंगी। निजी क्षेत्र से मिलने वाली एकमुश्त धनराशि नए आधारभूत ढांचे के वित्तपोषण में सहायक होगी। जाहिर है इस योजना की कुंजी इसका क्रियान्वयन है । इससे जुड़ी आशंकाओं को दूर करने में सरकार का श्वेत-पत्र और कागर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) को लेकर केलकर समिति की सिफारिशें सहायक होंगी। सबसे ज्यादा जरूरी होगा विवाद निस्तारण प्रणाली में सुधार और समझौतों में पारदर्शिता लाना।