सिक्योरिटीज मतलब क्या

NSE और BSE क्या है?
बीएसई का मतलब है ‘बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज’ और एनएसई का मतलब है ‘नेशनल स्टॉक एक्सचेंज’। हालांकि हर कोई जानता है कि ये दोनों शेयर्स और बॉन्ड्स जैसी सिक्योरिटीज से जुड़े हुये हैं, लेकिन इनका असली मतलब शायद हर किसी को पता नहीं होगा। आइये हम बताते है क्या हैं बीएसई और एनएसई। भारत में दो शेयर बाज़ार हैं: बीएसई यानि ‘बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज’ और एनएसई यानि ‘नेशनल स्टॉक एक्सचेंज’।
भारत में दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज :
- BSE यानि (Bombay Stock Exchange), की स्थापना सन 1875 में हई थी।
- NSE यानि (National Stock Exchange) की स्थापना सन 1992 में हुई थी।
दोनों एक्सचेंज के सूचकांक(INDEX) :
- NSE का सूचकांक NIFTY (‘N’=NSE तथा ‘IFTY’=fifty यानि NSE-50)| “NIFTY INDEX” NSE में सूचीबद्ध शेयरों का प्रतिनिधित्व करती है। और
- BSE का सूचकांक “SENSEX” (“सेंसिटिव इंडेक्स”) । “SENSEX INDEX” BSE में सूचीबद्ध शेयरों का प्रतिनिधित्व(represent) करती है।
NSE और BSE index की गणना विधि क्या है ? :
SENSEX और NIFTY INDEX की गणना “free float market capitalization” विधि से की जाती है। यानी सेन्सेक्स की गणना “मार्केट कैपिटलाइजेशन-वेटेज मेथेडोलॉजी” के आधार पर की जाती है।
National Stock Exchange क्या है ?
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज मुंबई में स्थित है, यह भारत का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। यह 1992 से अस्तित्व में आया और यहीं से इलेक्ट्रोनिक एक्सचेंज सिस्टम की शुरुआत हुई और पेपर सिस्टम खत्म हुआ।
एनएसई ने 1996 से निफ्टी की शुरुआत की, जो टॉप 50 स्टॉक इंडेक्स दे रहा था और यह तेजी से भारतीय पूंजी बाज़ार की रीड बना। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को 1992 को कंपनी के रूप में पहचान मिली और 1992 में इसे सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स एक्ट, 1956 के तहत कर भुगतान कंपनी के रूप में स्थापित किया गया।
National stock exchange दुनिया का 11 वां सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। इसका बजार पूंजीकरण (market capitalization) अप्रैल 2018 तक 2.27 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुच गया था ।
BSE यानि BOMBAY STOCK EXCHANGE क्या है ? :
बीएसई की स्थापना 1875 में हुई, इसे नेटिव शेयर और स्टॉक ब्रोकर एसोसिएशन’ के नाम से जाना जाता था। इसके बाद, 1957 के बाद भारत सरकार ने सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट, 1956 के तहत इसे भारत के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज के रूप में मान्यता दे दी।
सेन्सेक्स की शुरुआत 1986 में हुई, यह भारत का पहला इक्विटी इंडेक्स है जो कि टॉप 30 एक्सचेंज ट्रेडिंग कंपनियों को एक पहचान दे रहा था। सेंसेक्स का आधार वर्ष 1978-79 है।
1995 में, बीएसई की ऑनलाइन ट्रेडिंग शुरू हुई, उस समय इसकी क्षमता एक दिन में 8 मिलियन ट्रांजेक्शन थी।
बीएसई एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज है, और यह मार्केट डेटा सर्विस, रिस्क मैनेजमेंट, सीडीएसएल (सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड), डिपॉजिटरी सर्विसेज आदि सेवाएँ प्रदान करता है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज दुनिया का 12वा बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है, आउर जुलाई 2017 को इसका बाजार पूंजीकरण 2 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा था।
बीएसई और एनएसई में मुख्य अंतर :
- बीएसई और एनएसई दोनों भारत के बड़े शेयर बाज़ार हैं।
- बीएसई पुराना और एनएसई नया है।
- टॉप स्टॉक एक्सचेंज में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का 10वां स्थान है वहीं एनएसई का 11वां।
- इलेक्ट्रॉनिक एक्चेंज सिस्टम पहली बार एनएसई में 1992 में और बीएसई में 1995 में शुरू किया गया।
- कितने शेयरों को शामिल किया जाता है : एनएसई का निफ्टी इंडेक्स 50 स्टॉक इंडेक्स दिखाता है वहीं बीएसई का सेन्सेक्स 30 स्टॉक एक्सचेंज दिखाता है।
- बीएसई को 1957 में स्टॉक एक्सचेंज के रूप में पहचान मिली वहीं एनएसई को 1993 में पहचान मिली।
BSE और NSE के स्थापना को लेकर अंतर :
- एनएसई भारत का सबसे बड़ा एक्सचेंज है, बीएसई सबसे पुराना है।
- बीएसई 1875 में स्थापित हुआ, जब कि एनएसई 1992 में।
- एनएसई का बेंचमार्क इंडेक्स निफ्टी है, जब कि बीएसई का सेन्सेक्स है। एनएसई में 1696 और बीएसई में 5749 कंपनियाँ सूचीबद्ध हैं।
- इनकी ग्लोबल रैंक 11 और 10 है।
निष्कर्ष : नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज दोनों भारतीय पूंजी बाजार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। रोज लाखों ब्रोकर और निवेशक इन स्टॉक एक्सचेंजों में ट्रेडिंग करते हैं। ये दोनों महाराष्ट्र के मुंबई में स्थापित हैं और सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) से मान्यता प्राप्त हैं।
आपके सुझाव आमंत्रित है। इस आर्टिकल से संबंधित किसी भी प्रकार का संशोधन, आप हमारे साथ साझा कर सकते हैं। यह लेख आपको कैसा लगा अपनी राय निचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें ।
SBI डीमैट अकाउंट क्या है?
इसे सुनेंरोकेंआप एसबीआई डीमैट अकाउंट में कई सुविधाओं का फायदा ले सकते हैं. डीमैट अकाउंट एक ऐसा अकाउंट है जिसके जरिये आप भारतीय शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करते हैं. जब निवेशक एक्सचेंज में शेयर की शेयर की खरीदारी करता है तो मोनेटरी राशि के बदले पेमेंट करना होता है तो आपके शेयर डीमैट अकाउंट में जमा हो जाते हैं.
क्या डीमैट अकाउंट से मतलब है?
इसे सुनेंरोकेंएक डीमैट या डीमटेरियलाइज्ड खाता एक खाता है जिसका उपयोग शेयरों और प्रतिभूतियों को रखने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक सुविधा प्रदान करने के लिए किया जाता है। इस तरह के खाते में उपयोग में आसानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप में सरकारी प्रतिभूतियों, शेयरों, ईटीएफ, म्यूचुअल फंड और बांड सहित सभी निवेश होते हैं।
SBI डीमैट अकाउंट कैसे खोले?
SBI me Demat Account Kaise Khole
- एसबीआई बैंक शाखा – कोई व्यक्ति अपने निकटतम एसबीआई शाखा का दौरा कर सकता है और वहां डीमैट खाता खोलने के लिए सभी आवश्यक जानकारी दे सकता है।
- एसबीआई कैप सिक्योरिटीज लिमिटेड – आप डीमैट खाता खोलने के लिए एसबीआई कैप सिक्योरिटीज लिमिटेड शाखा का दौरा कर सकते हैं।
डीमैट अकाउंट खोलने के लिए क्या करें?
इसे सुनेंरोकेंअ: डीमेट खाता खोलने के लिए निवेशक को सेबी से पंजीकृत डिपॉजिटरी पार्टीसिपेंट के साथ डीमेट अकाउंट खोलने की आवश्यकता है. अकाउंट खोलने के लिए निवेशक को अकाउंट ओपनिंग फ़ॉर्म भरना होगा सेबी द्वारा स्वीकृत दस्तावेज़ों की प्रतियाँ पहचान के प्रमाण, पते के प्रमाण के रूप में और अकाउंट खोलते समय मूल पैन कार्ड जमा करना होगा.
एसबीआई में खाता कितने रुपए से खुलता है?
इसे सुनेंरोकेंयानी 11 मार्च 2020 के बाद से अगर किसी व्यक्ति के खाते में 3000 रुपये से भी कम हैं तो बैंक द्वारा इसपर कोई चार्ज वसूला नहीं जाएगा. साथ ही ग्राहक चाहें तो जीरो रुपये बैलेंस के साथ भी अपने खाते को खोल सकते हैं. फीस के नियम? मेट्रों शहरों में एसबीआई सेविंग खाते में मिनमम बैलेंस 3000 रुपये हैं.
NSDL का मतलब क्या है?
इसे सुनेंरोकेंNSDL का मतलब नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड है और यह देश की पहली और प्रमुख संस्था है जो डिपॉजिटरी और डीमैट अकाउंट सेवाएं प्रदान करती है। डीमैट अकाउंट की पेशकश के अलावा, NSDL अपने ग्राहकों के लिए कई अन्य शेयर-संबंधित सेवाएं प्रदान करने में भी शामिल है।
क्या सरकारी कर्मचारी डीमैट अकाउंट खोल सकता है?
इसे सुनेंरोकेंभारत सरकार के कर्मचारी देश के नियमित नागरिक भी हैं और वे भारत में किसी अन्य व्यक्ति की तरह ही एक ट्रेडिंग और डीमैट खाता खोल सकते हैं। एनआरआई को छोड़कर सभी के लिए यह प्रक्रिया बहुत समान है।
एन ए वी (NAV) क्या है?
ये खर्चे टी ई आर – टोटल एक्सपेंस रेश्यो (TER – Total Expense Ratio) के रूप में जाने जाते हैं। म्यूचुअल फंड स्कीम के खर्चें, जिनमे फंडस मैनेजमेंट; प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन), वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) खर्चें आदि शामिल हैं, को स्कीम की असेस्ट्स के प्रोपोरशन में चार्ज किया जाता है और स्कीम एन ए वी (NAV) में एडजस्ट किया जाता है।
एन ए वी कैसे कैलकुलेट की जाती है?
अब तक आपने समझा NAV क्या होता है। आगे उदाहरण के तौर पर इसके कैलकुलेशन के बारे में बताये जाने पर और भी स्पष्ट हो जायेगा की NAV कैसे कैलकुलेट होता है।
एक म्यूचुअल फंड कंपनी (एएमसी, AMC), एक न्यू फण्ड ऑफरिंग; सिक्योरिटीज मतलब क्या एन एफ ओ (NFO) के माध्यम से सदस्यता के सब्सक्रिप्शन के लिए, एक नई स्कीम पेश करती है। एन एफ ओ में, एक स्कीम की इकाइयों (यूनिट्स) की कीमत 10 रुपये होती है। मान लीजिए, एएमसी विभिन्न इन्वेस्टरों से एन एफ ओ के दौरान 1,000 करोड़ रुपये जुटाती है ।
चूंकि एन एफ ओ ग्राहकों के लिए इश्यू मूल्य 10 रुपये तय किया गया है, ए एम सी इन्वेस्टर्स को जुटाए गए टोटल अमाउंट के आधार पर यूनिट अलॉट करता है। इस उदाहरण में, एन एफ ओ में 1,000 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं और एन ए वी 10 रुपये सिक्योरिटीज मतलब क्या है। इसलिए, ए एम सी 100 करोड़ यूनिटस (मतलब 1,000 करोड़ रुपये / 10 एन ए वी) जारी करती है और इन्वेस्टर्स को उनकी संबंधित इन्वेस्टमेंट अमाउंटस के आधार पर प्रोपोरशनली अलॉट करती है । इसलिए, उदाहरण के तौर पर अगर आपने एन एफ ओ में 1 लाख रुपये का इन्वेस्टमेंट किया है, तो आपको 10,000 यूनिटस अलॉट की जाएंगी। तो, अब आप जान गए होंगे कि एन ए वी की कैलकुलेशन कैसे की जाती है।
आइए इसे आगे समझते हैं –
- एनएफओ में जुटाई गई 1,000 करोड़ रुपये की राशि को योजना के आदेश के अनुसार विभिन्न सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट किया जाता है।
- इन सिक्योरिटीज के बाज़ार मूल्य में डेली बेसिस पर परिवर्तन (चेंज) होता है।
- अगले दिन स्कीम का पोर्टफोलियो एसेट वैल्यू 1000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1030 करोड़ रुपये हो जाता है । सरलता के लिए, आइए इस समय योजना के खर्चों को नज़रअंदाज़ करतें हैं । स्कीम एन ए वी 1,030 करोड़ रुपये बकाया (आउटस्टैंडिंग), 100 करोड़ यूनिट्स से डिवाइड करने के बाद 10.3 रुपये होगी ।
ओपन एंडेड म्यूचुअल फंड स्कीम में इन्वेस्टर दिन के लिए घोषित एन ए वी पर किसी भी समय यूनिट खरीद या बेच सकते हैं। एक्सिस्टिंग इन्वेस्टर, बिना एक्जिट लोड मानकर, उस दिन के NAV पर यूनिट्स बेच सकते हैं (एग्जिट लोड एक निश्चित पीरियड के भीतर रिडेम्पशन के लिए स्कीम द्वारा लगाया जाने वाला चार्ज है)। इसलिए, बहुत ही सरल शब्दों में NAV का क्या अर्थ है? वह मूल्य, जिस पर इन्वेस्टर किसी म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम की यूनिट्स को खरीद या बेच सकते हैं ।
इसके अलावा:
- म्यूचुअल फंड यूनिट का एन ए वी अंडरलाइंग सिक्योरिटीज के मूल्य और स्कीम लॉन्च के बाद से जमा प्रॉफ़िट्स से प्राप्त होता है।
- दो अलग-अलग म्यूचुअल फंड स्कीम्स में सिक्योरिटीज का एक ही पोर्टफोलियो हो सकता है और फिर भी एक को एट पार वैल्यू (10 रुपये का एन ए वी) पर पेश किया जा सकता है जबकि दूसरी स्कीम का एन ए वी 100 रुपये से अधिक हो सकता है।
किसी एसेट का NAV इन्वेस्टर्स सिक्योरिटीज मतलब क्या के लिए क्या मायने रखता है?
एन ए वी केवल यह निर्धारित करता है कि इनवेस्टेड अमाउंट के लिए कितनी यूनिट्स अलॉट की जाएगी। एक इन्वेस्टर के रूप में आपको इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि आपके पास कितनी इकाइयां हैं, इसके बजाय आपको यह देखना चाहिए कि आपके इन्वेस्टमेंट की वैल्यू कितनी बढ़ी है। संक्षेप में कहा जाये तो, फोकस रिटर्न पर होना चाहिए न कि एन ए वी पर।
इसलिए, म्यूचुअल फंड स्कीम की एन ए वी उसके परफॉरमेंस का सटीक इंडिक्टर नहीं है। इन्वेस्टमेंट का डिसिशन लेने से पहले इन्वेस्टर को हमेशा स्कीम्स के ऐतिहासिक प्रदर्शन (हिस्टोरिकल परफॉरमेंस) और टोटल एक्सपेंस रेश्यो को अन्य पैरामीटर्स के साथ देखना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
हमने चर्चा की है कि एन ए वी का मतलब क्या है और एन ए वी की कैलकुलेशन कैसे की जाती है। एन ए वी केवल यह निर्धारित करता है कि आपको अपने इन्वेस्टमेंट के लिए कितनी यूनिट्स अलॉट की गई हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि किस एन ए वी पर आपने यूनिट्स लिया है, लेकिन आपके इंवेस्टंट्स की वैल्यू कितनी बढ़ी है? एन ए वी में अप्प्रेसिएशन, एनएवी से कहीं अधिक इम्पोर्टेन्ट है। एन ए वी के बारे में इस ज्ञान के साथ; उम्मीद है, आप स्मार्टर इन्वेस्टमेंट डिसिशन लेने में काबिल होंगे।
म्यूचुअल फंड इंवेस्टमेंट्स बाज़ार के रिस्क्स से प्रभावित हैं, स्कीम्स से संबंधित सभी डाक्यूमेंट्स को ध्यान से पढ़ें ।
ऑनलाइन Demat Account खुलवाने के क्या हैं फायदे और यह कैसे ट्रेडिंग अकाउंट से है अलग
डीमैट अकाउंट को अच्छी तरह से समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ट्रेडिंग अकाउंट (Trading Account) क्या है। बता दें कि ट्रेडिंग अकाउंट एक इन्वेस्टमेंट अकाउंट है जहां निवेशक अपने शेयरों या दूसरे सिक्योरिटीज की खरीद और बिक्री करता है।
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। मार्केट की जब भी हम चर्चा करते हैं, तो हम Demat Account (डीमैट अकाउंट) के बारे में जरूर सुनते हैं। इसका मतलब क्या है और क्या निवेशकों को इसके बारे में जानना जरूरी है, इसके अलावा यह बैंक अकाउंट और ट्रेडिंग अकाउंट से कैसे अलग है, आइए इसको आसान भाषा में समझते हैं।
यह तो हम सभी जानते हैं कि पैसे जमा करना हो या फिर पैसे की लेनेदेन करनी हो तो हमारे पास बैंक अकाउंट होना चाहिए। लेकिन जब आप शेयर मार्केट में कदम रखते हैं और शेयर की ट्रेड करते हैं तो वहां दो अकाउंट्स को खुलवाना आपके लिए अहम हो जाता है। पहला है ट्रेडिंग अकाउंट और दूसरा है डीमैट अकाउंट (Demat and Trading Account Online)।
आज ही शुरू करें अपना शेयर मार्केट का सफर, विजिट करें- https://bit.ly/3n7jRhX
डीमैट अकाउंट से पहले ट्रेडिंग अकाउंट को समझें
डीमैट अकाउंट को अच्छी तरह से समझने के लिए सबसे पहले जानते हैं कि ट्रेडिंग अकाउंट (Trading Account) क्या है। बता दें कि ट्रेडिंग अकाउंट एक इन्वेस्टमेंट अकाउंट है, जहां निवेशक अपने शेयरों या दूसरे सिक्योरिटीज की खरीद और बिक्री करता है। यह बैंक अकाउंट और डीमैट अकाउंट के बीच एक लिंक प्रदान करता है। अगर आप शेयर मार्केट (Share Market) में ट्रेड करना चाहते हैं तो इस अकाउंट को ओपन करना अनिवार्य है।
क्या है डीमैट अकाउंट
डीमैट "डीमैटरियलाइजेशन" का संक्षिप्त नाम है, जिसका अर्थ है फिजिकल शेयर्स और सिक्योरिटीज को इलेक्ट्रॉनिक रूप में परिवर्तित करना। इलेक्ट्रॉनिक रूप में अपने शेयर को एक जगह रखने या होल्ड करने के लिए डीमैट अकाउंट आवश्यक सिक्योरिटीज मतलब क्या है। यह ठीक वैसे ही है जैसे आप अपने बैंक में पैसे को जमा करते हैं। डीमैट अकाउंट शेयरों और अन्य सिक्योरिटीज को खरीदने और बेचने के लिए त्वरित और सुरक्षित तरीके से सुविधा प्रदान करता है। इसे NSDL (National Security Depository Ltd) और CDSL (Central Depository of Securities India Ltd) मैनेज करते हैं।
डीमैट अकाउंट खुलवाने के फायदे
1. जब हमारे पास फिजिकल शेयर्स या बॉड्स होते हैं, तो उसके खोने डर ज्यादा होता है। इसके अलावा फ्रॉड भी होने की संभावना होती है। जब पेपरलेस ऑनलाइन डीमैट अकाउंट (Demat Account Online) की बात आती है, तो यह पूरी तरह से सुरक्षित है।
2. आप अपने डीमैट अकाउंट में रखे शेयर या सिक्योरिटीज पर बैंक लोन सकते हैं। इसके अलावा आप इस पर ब्याज भी कमा सकते हैं।
3. इसके जरिए आप अपने शेयर को आसानी से ट्रैक कर सकते हैं। आपको मैन्युअल रूप से रिकॉर्ड बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है। आपके सभी डॉक्यूमेंट्स प्रत्येक निवेश के रिकॉर्ड के साथ सुरक्षित रहते हैं।
4. डीमैट अकाउंट खुलवाना एक कॉस्ट इफेक्टिव भी है और शेयर खरीदने या बेचने पर आपको इसके लिए ज्यादा चार्ज नहीं देना पड़ेगा। जैसे आप ट्रेडिंग ऐप 5 paisa पर बिना किसी समस्या के आसानी से अपना Free Demat Account खुलवा सकते सिक्योरिटीज मतलब क्या हैं। यहां आप फिजिकल बांड्स के लिए जरूरी स्टैंप ड्यूटी और अन्य हैंडलिंग चार्ज जैसे खर्चों से बच सकते हैं। यहां आपको केवल ब्रोकरेज चार्ज देना पड़ेगा। इसके अलावा अगर आप 5paisa पर डिस्काउंट ब्रोकर चुनते हैं तो आप ज्यादा पैसे बचा सकते हैं।
5.डीमैट अकाउंट के होने पर आप जल्दी से अपने शेयर को बेच और खरीद सकते हैं। इसमें रखे शेयर आपके लिए शॉर्ट-टर्म लिक्विडिटी की तरह है, जिसे आप जल्दी से बेचकर पैसे में कनवर्ट कर सकते हैं। 5paisa पर ऑनलाइन डीमैट अकाउंट खुलवाकर आप इस तरह और भी कई फायदे ले सकते हैं।
Risk Adjusted Return: क्या है रिस्क एडजस्टेड रिटर्न का मतलब? बाजार से कम जोखिम में बेहतर कमाई के लिए कर सकते हैं इसका इस्तेमाल
Risk Adjusted Return: निवेशक जब अपने पोर्टफोलियो के रिटर्न या दो निवेश विकल्पों के प्रदर्शन की तुलना करते हैं तो आमतौर पर वे निवेश पर मिलने वाले रिटर्न को देखते हैं. हालांकि यह तरीका बेहतर नहीं है.
रिस्क एडजस्टेड रिटर्न विभिन्न इंडिविजुअल सिक्योरिटीज और म्यूचुअल फंडों के अलावा पोर्टफोलियो की भी तुलना करने में मददगार है. (Image- Pixabay)
Risk Adjusted Return: आमतौर पर जब निवेशक अपने पोर्टफोलियो के रिटर्न या दो निवेश विकल्पों के प्रदर्शन की तुलना करते हैं तो वे सिर्फ निवेश पर मिलने वाले रिटर्न को देखते हैं. हालांकि निवेश विकल्पों की तुलना करने का यह तरीका बेहतर नहीं है. निवेशकों को न सिर्फ रिटर्न के आधार पर अपना फैसला लेना चाहिए बल्कि इसे हासिल करने के लिए लिए गए रिस्क को भी गणना में शामिल करना चाहिए. रिस्क एडजस्टेड रिटर्न इसे ही मापने का तरीका है. यह विभिन्न इंडिविजुअल सिक्योरिटीज और म्यूचुअल फंडों के अलावा पोर्टफोलियो की भी तुलना करने में मददगार है.
निवेश से पहले रिस्क की गणना इसलिए है जरूरी
निवेश को लेकर बात करें तो रिस्क बेहतर अवसर प्रदान करता है, जितना अधिक रिस्क लेंगे, उतना ही अधिक रिटर्न पाने की संभावना होगी. ऐसे में महज रिस्क की वजह से किसी विकल्प में निवेश से दूर न रहें. हालांकि इसके लिए जरूरी है कि पहले आप यह समझ लें कि आप कितना रिस्क ले सकते हैं और आप अपने पोर्टफोलियो में कितना रिस्की सिक्योरिटी रख सकते हैं. रिस्क की गणना कई मायनों में जरूरी है-
Taxation on NPS: नेशनल पेंशन सिस्टम पर कितना ले सकते हैं टैक्स लाभ, सैलरीड हैं तो मिल सकता है ज्यादा बेनेफिट
Bank RD vs Post Office RD: 10 साल में जमा करना है 10 लाख, हर महीने कितना करें निवेश, ये हैं बेस्ट आरडी प्लान
- रिस्क को मापना आपके फंड मैनेजर, एडवाइजर या फाइनेंशियल कंसल्टेंट की क्षमताओं को जानने का तार्किक और ऑब्जेक्टिव तरीका है. आदर्श स्थिति की बात करें तो फंड मैनेजर का लक्ष्य कम से कम रिस्क में अधिक रिटर्न हासिल करने का होता है.
- रिस्क को मापकर आप अपने अधिक रिस्की निवेश को कम रिस्की निवेश से अलग कर सकते हैं और बिना किसी विरोधाभास के आप पता कर सकते हैं कि आपको निवेश पर वास्तव में कितना रिटर्न हासिल हुआ है.
- रिस्क एडजस्टेड रिटर्न परफॉरमेंस, वोलैटिलिटी, इंडेक्स अलाइनमेंट और क्वालिटी को मापने में मदद करता है.
- रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न फंड मैनेजर के परफॉरमेंस को मापने का बेहतर जरिया है.
- वोलैटिलिटी को मापने का स्टैंडर्ड डेविएशन बेहतर तरीका है.
इस तरह कैलकुलेट होता है रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न
रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न को मापने के लिए मुख्य रूप से पांच तरीके हैं- अल्फा, बीटा, आर-स्क्वायर्ड, स्टैंडर्ड डेविएशन और शार्प रेशियो.
- Alpha: अगर आप जानना चाहते हैं कि आपका निवेश कैसा है तो अल्फा इसे मापने का बेहतर तरीका है. इसके तहत निवेश पर सिक्योरिटीज मतलब क्या सिक्योरिटीज मतलब क्या मिलने वाले रिटर्न की तुलना सेंसेक्स, निफ्टी जैसे बेंचमार्क इंडेक्स में मजबूती से की जाती है. अल्फा से फंड मैनेजर या पोर्टफोलियो के टैलेंट का पता लगाया जा सकता है क्योंकि इससे आसानी से पता कर सकते हैं कि आपको निवेश पर बेंचमार्क से अधिक रिटर्न मिला रहा है या नहीं.
- Beta: बीटा वोलैटिलिटी मापने का तरीका है और मार्केट की तुलना में निवेश में कितना रिस्क लिया गया है, इसे भी बीटा बताता है. इसकी वैल्यू एक से अधिक होने का मतलब है कि मार्केट की तुलना में आपका निवेश विकल्प अधिक वोलैटाइल है.
- Standard Deviation: स्टैंडर्ड डेविएशन के जरिए एक अवधि में किसी एसेट के रिटर्न में इसके एवरेज रिटर्न से ऊपर-नीचे होने के बदलाव को मापा जाता है यानी कि यह बताता है कि एवरेज रिटर्न की तुलना में किसी अवधि में निवेश पर रिटर्न कितना अधिक या कम हो रहा है. यह बहुत महत्वपूर्ण तरीका है क्योंकि इससे यह मापा जा सकता है कि एसेट से मिलने वाला रिटर्न कितना स्थाई है.
- R-squared: आर-स्क्वायर्ड के जरिए बेंचमार्क के साथ पोर्टफोलियो के प्राइस ट्रेंड्स के बीच संबंध को समझा जा सकता है. अल्फा परफॉरमेंस बाता है जबकि आर-स्क्वायर्ड मूवमेंट से जुड़ा हुआ है. इसकी वैल्यू एक से लेकर सौ फीसदी तक हो सकती है और यह जितना अधिक होगा, पोर्टफोलियो बेंचमार्क की दिशा में उसी हिसाब से आगे बढ़ने का संकेत है. इसकी वैल्यू कम होने का मतलब है कि पोर्टफोलियो इंडेक्स के साथ-साथ नहीं बढ़ रहा है.
- Sharpe Ratio: शॉर्प रेशियो के जरिए यह मापा जाता है कि निवेशक ने जितना रिस्क लिया, उसके मुताबिक उसे कितना रिटर्न लिया है. इसके तहत निवेश की गई पूंजी पर मिलने वाले रिटर्न को उस रिटर्न से घटाया जाता है जो तब मिलता जब पूंजी को सरकारी सिक्योरिटीज जैसे रिस्क-फ्री इंस्ट्रूमेंट में निवेश किया जाता. इस अंतर को फिर एसेट के स्टैंडर्ड डेविएशन से डिवाइड किया जाता है जो शार्प रेशियो है. यह जितना अधिक होगा, उतना ही रिस्क पर अवार्ड मिलेगा या रिटर्न अधिक मिलेगा.
(यह लेख महज जानकारी के लिए है. मार्केट से जुड़े सिक्योरिटीज में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. ऐसे में निवेश से जु़ड़ा कोई फैसला लेने से पहले अपने सलाहकार से जरूर सलाह ले लें.)