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विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश

विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश

निवेश के लिए भारत सबसे अच्छी जगह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि खासकर कोविड-19 के बाद भारत वैश्विक निवेशकों के लिए सबसे अच्छी जगह बन गया है और आपूर्ति श्रृंखला में भारत एक विश्वसनीय खिलाड़ी है। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कर्नाटक के वैश्विक निवेशक सम्मेलन (जीआईएम) के उद्घाटन समारोह में कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत तेजी विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश से वृद्धि कर रहा है और वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखता है।

मोदी ने कहा, 'भारत में निवेश का मतलब सबके लिए समावेशी धारणा में, लोकतंत्र में और दुनिया के साथ एक बेहतर, स्वच्छ और सुरक्षित ग्रह के लिए निवेश करना है। निवेशकों को लालफीताशाही में फंसाने के बजाय हमने निवेश के लिए काफी उपयुक्त माहौल बनाया।’ उन्होंने 9-10 साल पहले की स्थिति का जिक्र किया जब देश नीति और क्रियान्वयन के मुद्दों से जूझ रहा था। मोदी ने कहा, 'नए जटिल कानून बनाने के बजाय हमने उन्हें तर्कसंगत बनाया।

भारत को पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर 84 अरब डॉलर का विदेशी निवेश मिला था। अनिश्चित समय में अधिकांश देश भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों के बारे में आश्वस्त हैं। भारत दुनिया के साथ आगे विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश बढ़ रहा है और उसके साथ काम कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारत आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के दौर में दवाओं और टीकों की आपूर्ति के बारे में दुनिया को आश्वस्त कर सकता है।’

मोदी ने कहा कि वैश्विक संकट में भी विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों ने एक उम्मीदों वाली जगह के रूप में भारत को सराहा है। उन्होंने कहा, 'हम हर गुजरते दिन के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने के लिए अपनी बुनियाद को मजबूत करने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने जो सुधार किए हैं उनमें जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), आईबीसी (दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता), बैंकिंग सुधार, यूपीआई (एकीकृत भुगतान इंटरफेस) और 1,500 पुराने कानूनों को समाप्त करना और 40 हजार अनावश्यक अनुपालन शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि कंपनी कानून के कई प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, ऑनलाइन आकलन, एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के लिए नए रास्ते, ड्रोन नियमों को उदार बनाने जैसे कदमों के साथ ही, भू-स्थानिक, अंतरिक्ष क्षेत्र और रक्षा क्षेत्र जैसे कदम अभूतपूर्व ऊर्जा ला रहे हैं। मोदी ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में परिचालन वाले हवाईअड्डों की संख्या दोगुनी हो गई है और 20 से अधिक शहरों में मेट्रो का विस्तार हुआ है।

पीएम-गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर योजना का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि इसका उद्देश्य एकीकृत बुनियादी ढांचे का विकास करना है। उन्होंने बताया कि न केवल बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बल्कि मौजूदा बुनियादी ढांचे के लिए भी एक रोडमैप तैयार किया जाता है, जबकि योजना को लागू करने में सबसे सक्षम तरीके पर चर्चा की जाती है। मोदी ने सुदूर इलाके तक कनेक्टिविटी स्थापित कर उत्पाद या सेवा को विश्वस्तरीय बनाकर इसे और बेहतर बनाने के तरीकों पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि कारोबारी सुगमता के मामले में कर्नाटक को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। उन्होंने रेखांकित किया, ‘फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 400 यहां हैं और भारत के 100 से अधिक यूनिकॉर्न में से 40 से अधिक कर्नाटक में हैं।’

इस सम्मेलन का मकसद निवेशकों को आकर्षित करना और अगले दशक के लिए विकास एजेंडा स्थापित करना है। कार्यक्रम में कुमार मंगलम बिड़ला, सज्जन जिंदल और विक्रम किर्लोस्कर सहित कुछ शीर्ष उद्योगपतियों ने हिस्सा लिया।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि बेंगलूरु में होने वाले इस आयोजन में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आएगा। सरकार ने यह भी कहा कि उसे उम्मीद है कि निवेश पूरा होने पर पांच लाख से अधिक रोजगार के मौके सृजित होंगे।

भारत में निवेश बढ़ाती दुनिया

निश्चित रूप से जिस तरह भारत विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश की नई लॉजिस्टिक नीति 2022 और गति शक्ति योजना का आगाज अभूतपूर्व रणनीतियों के साथ हुआ है, उससे भी विदेशी निवेश बढ़ेगा। हम उम्मीद करें कि सरकार के द्वारा देश में एफडीआई की नई चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे और ऐसे में वैश्विक निवेश बैंक मार्गन स्टेनली के द्वारा 2 नवंबर को प्रस्तुत की गई वह रिपोर्ट विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश साकार होते हुए दिखाई दे सकेगी, जिसमें कहा गया है कि तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकेगी और साथ ही भारत अपनी आर्थिक अनुकूलताओं से वर्ष 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर दिखाई दे सकेगा। कई कारणों से इस वक्त भारत को विदेशी निवेश के अनुकूल माना जा रहा है…

इन दिनों विभिन्न वैश्विक आर्थिक संगठनों के द्वारा विदेशी निवेश से संबंधित रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि दुनिया में आर्थिक मंदी की चुनौतियों के बीच भी भारत में विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ रहा है। हाल ही में 2 नवंबर को वैश्विक निवेश बैंक मॉर्गन स्टेनली के द्वारा ‘व्हाई दिस इज इंडियाज डिकेड’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विश्व अर्थव्यवस्था में नई शक्ति प्राप्त कर रहा है। ऐसे में भारत में दुनिया के निवेशकों के लिए विदेशी निवेश किया जाना हर प्रकार से लाभप्रद माना जा रहा है। साथ ही भारत में तेजी से बढती हुई आर्थिक अनुकूलताओं के कारण वर्ष 2030 के अंत से पहले भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। गौरतलब है कि 2 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट ‘इन्वेस्ट कर्नाटक-2022’ को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए कहा है कि भारत में निवेश का मतलब लोकतंत्र और विश्व के लिए निवेश है। यद्यपि यह दुनिया के लिए आर्थिक संकट और युद्ध की परिस्थितियों से जूझने का समय हो सकता है, लेकिन दुनियाभर के अर्थ विशेषज्ञ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए भारत को चमकता स्थान (स्पाट) बता रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले वर्ष 2021-22 में भारत के रिकॉर्ड स्तर पर 84 अरब डॉलर का विदेशी निवेश मिला था। यदि हम इस बात पर विचार करें कि जब पूरी दुनिया में आर्थिक और वित्तीय मंदी का माहौल है, विश्व की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों के द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता क्यों दी जा रही है, तो हमारे सामने कई चमकीले तथ्य उभरकर सामने आते हैं। नि:संदेह देश में विदेशी निवेश के लिए पारदर्शी व स्थायी नीति है। देश में विदेशी निवेश के लिए रेड कार्पेट बिछाने का माहौल बना है। वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने वर्तमान वैश्विक मंदी के बीच भारत की रेटिंग नकारात्मक से उन्नत करके स्थिर की है, जो विदेशी निवेश के लिए उपयुक्त है। भारत में मजबूत राजनीतिक नेतृत्व है। भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न हैं। भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। देश में प्रतिभाशाली नई पीढ़ी की कौशल दक्षता, आउटसोर्सिंग और देश में बढ़ते हुए मध्यम वर्ग की चमकीली क्रयशक्ति के कारण विदेशी निवेश भारत की ओर तेजी से बढऩे लगा है। वस्तुत: विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश भारतीय घरेलू बाजार और अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। इस समय जहां भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है, वहीं दुनिया में सबसे तेज डिजिटलीकरण वाला देश भी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की विकास दर करीब 6.8 फीसदी होगी, जो दुनिया की सर्वाधिक विकास दर होगी। देश में 100 से अधिक यूनिकॉर्न है। करीब 531 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है। भारत के शेयर बाजार की ऊंचाई बड़ी है। बैंचमार्क सेंसेक्स 61 हजार अंकों के आसपास केंद्रित है। खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन है। कृषि विकास और कृषि निर्यात से भारत की नई पहचान बनी है।

दुनिया के विभिन्न देशों से भारत में कृषि क्षेत्र में भी बड़े निवेश किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि विगत 28 सितंबर को इंडोनेशिया के बाली में दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के सबसे प्रभावी संगठन जी-20 की बैठक के माध्यम से केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भारत के कृषि क्षेत्र में निवेश की सभावनाओं को आगे बढ़ाया है। इस मौके पर श्री तोमर ने अपने प्रभावी संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले आठ वर्षों में भारत सरकार ने कृषि और खाद्य प्रणालियों के समक्ष स्थिरता संबंधी चुनौतियों से निपटने, छोटे व सीमांत किसानों के कल्याण, खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता, प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन, कृषि अवसंरचना में बड़े निवेश, कृषि के डिजिटलीकरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से मुकाबले की रणनीतियों से भारत न केवल अपनी खाद्य जरूरतों की सफलता से पूर्ति कर रहा है, वरन जरूरतमंद देशों को वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ खाद्यान्न की आपूर्ति भी कर रहा है। वैश्विक महामारी के दौरान 2021-22 में भारत का कृषि निर्यात 50.21 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। उल्लेखनीय है कि इस अहम बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने जी-20 के सभी प्रतिनिधियों से अनुरोध किया कि वे भारत आकर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में जो सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं, उसे स्वयं देखें और भारत में निवेश के अभूतपूर्व अवसर का लाभ लें। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश के विकसित प्रदेशों के साथ-साथ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश सहित विकासशील प्रदेशों में भी कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़े हैं।

मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल के मुताबिक मध्यप्रदेश में कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश तेजी से बढ़ रहा है। नि:संदेह निवेश के लिए भारत दुनिया में सबसे अच्छी जगह इसलिए भी है, क्योंकि भारत में चौथी औद्योगिक विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश क्रांति का नेतृत्व करने की क्षमता है और सरकार ने देश को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए आवश्यक सुधार किए हैं। साथ ही 3-डी प्रिंटिंग, मशीन लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स और आईओटी औद्योगिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इतना ही नहीं भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा एक नवंबर 2022 से डिजिटल रुपए के प्रायोगिक इस्तेमाल की शुरुआत और वैश्विक व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय से भी देश में विदेशी निवेश और तेजी से बढऩे का नया परिदृश्य निर्मित हुआ है। निश्चित रूप से जिस तरह भारत की नई लॉजिस्टिक नीति 2022 और गति शक्ति योजना का आगाज अभूतपूर्व रणनीतियों के साथ हुआ है, उससे भी विदेशी निवेश बढ़ेगा। हम उम्मीद करें कि सरकार के द्वारा देश में एफडीआई की नई चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे और ऐसे में वैश्विक निवेश बैंक मार्गन स्टेनली के द्वारा 2 नवंबर को प्रस्तुत की गई वह रिपोर्ट साकार होते हुए दिखाई दे सकेगी, जिसमें कहा गया है कि तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकेगी और साथ ही भारत अपनी आर्थिक अनुकूलताओं से वर्ष 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर दिखाई दे सकेगा।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय

एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय

अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपए में रेकॉर्ड गिरावट आई है। रुपया डॉलर के मुकाबले 77 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। यह गिरावट एक ऐसे दौर में आई है, जब अमरीकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला थमा नहीं है और भारत में महंगाई सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। रुपए में रेकॉर्ड गिरावट के साथ ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से नीचे चला गया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, लेकिन उसकी मंशा गिरावट को थामना था, न कि उसके रुख को बदलना। रिजर्व बैंक ने भारतीय रुपए की मजबूती के लिए डॉलर की काफी बिकवाली की है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार 3 सितम्बर 2021 के सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉलर से 45 अरब डॉलर कम हो गया। मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार को 600 अरब डॉलर पर बनाए रखना चाहती है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 12 महीने के आयात के लिए काफी है, लेकिन इसमें तेजी से कमी आ सकती है।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। इस महंगाई से निपटने के लिए अमरीकी फेडरल रिजर्व ने करीब चार वर्ष बाद ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की है और इस साल इस तरह की छह और बढ़ोतरी के स्पष्ट संकेत दिए हैं। वर्ष के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 1.75 फीसदी से 2 फीसदी के बीच होंगी, जबकि 2023 के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 2.8 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं। इससे पूर्व अमरीका में ब्याज दर लगभग शून्य पर थी। अमरीकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश वृद्धि से दुनिया भर के निवेशक अब अमरीका की ओर जा रहे हैं। वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दरों वाले देशों से उधार लेते हैं। इसे ही 'कैरी ट्रेडÓ कहते हैं। अमरीका में ब्याज दर इस बढ़ोतरी से पूर्व लगभग शून्य थी। ऐसे में निवेशक वहां से लोन लेकर भारत सहित अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते थे, जहां ब्याज दर ज्यादा है। कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के पीछे यही 'कैरी ट्रेडÓ था, परन्तु अब 'कैरी ट्रेडÓ उलट रहा है। यही कारण है कि विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार बिकवाली कर अपना निवेश निकाल रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रेल से लेकर अब तक भारतीय बाजार से 5.8 अरब डॉलर का विदेशी निवेश निकाला जा चुका है। ऐसे में रुपए पर दबाव स्वाभाविक है।
भारतीय नीति निर्माता समुचित प्रबंधन द्वारा रुपए की गिरावट को रोक सकते हैं। वर्ष 2008 से 2011 के दौरान भी विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश वैश्विक आर्थिक परिदृश्य संकटपूर्ण रहा था, लेकिन भारतीय रुपया लगातार मजबूत हो रहा था। रुपए की कमजोरी से डीजल-पेट्रोल महंगे हो सकते हैं। खाद्य तेल के भी महंगा होने की आशंका है, परन्तु रुपए की कमजोरी से निर्यातकों को लाभ हो सकता है। उच्च निर्यात द्वारा भारत न केवल व्यापार संतुलन, डॉलर स्टॉक इत्यादि में वृद्धि का लाभ ले सकता है, अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर की तैयारी की आवश्यकता है।
इसके बावजूद यह ध्यान रखना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मूलत: आयात आधारित अर्थव्यवस्था है। ऐसे में सरकार को रुपए को मजबूत करने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। इसका सबसे अच्छा तरीका है, भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अर्थात एफडीआइ को प्रोत्साहित किया जाए। एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।

अमेरिकी शेयर बाजार में कैसे करें निवेश, क्या ये सही समय है?

एक वित्तीय वर्ष में 2,50,000 डॉलर यानी करीब विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश 1 करोड़ 80 लाख रुपये भारतीय सीमा के बाहर निवेश कर सकते हैं.

अमेरिकी शेयर बाजार में कैसे करें निवेश, क्या ये सही समय है?

जबरदस्त रिटर्न के लिए अच्छी और मुनाफा बनाने वाली कंपनी की तलाश हर निवेशक को होती है. हो सकता है ऐसे में आपका मन टेस्ला, अमेजन या नेटफ्लिक्स जैसी कंपनी पर आया हो जो भारतीय बाजार नहीं बल्कि US के बाजार में निवेश के लिए मौजूद है. आइए ऐसे में समझते हैं एक भारतीय निवेशक के लिए अमेरिकी बाजार में निवेश से जुड़े विभिन्न पहलुओं को-

अमेरिका में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर पैकेज के ऐलान के बाद S&P 500 इंडेक्स अप्रैल में पहली बार 4,000 का स्तर पार कर गया.

कितना बड़ा है US स्टॉक मार्केट?

अमेरिकी शेयर बाजार दुनिया का सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट है. US के दो बड़े स्टॉक एक्सचेंज, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और नैस्डैक में अमेजन, टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, इत्यादि विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों के शेयर लिस्टेड हैं. अमेरिकी बाजार से जुड़े विभिन्न इंडेक्स जैसे S&P 500 इंडेक्स, डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज और नैस्डैक कंपोजिट इंडेक्सों का इस्तेमाल निवेशकों की दृष्टि से US और विश्व की अर्थव्यस्था को समझने के लिए किया जाता है. साथ ही दुनिया के दूसरे बाजारों पर भी इनकी दिशा का बड़ा असर होता है. दूसरे देशों की कंपनियां भी विभिन्न वजहों से अपनी लिस्टिंग US बाजार में करवाती है.

निवेश के क्या हो सकते हैं फायदे?

निवेशक हमेशा रिस्क को कम करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में विभिन्न सेक्टर और अलग अलग तरह के स्टॉक्स रखना चाहते हैं. इस दृष्टि से किसी भी बाहरी बाजार में निवेश नए विकल्पों को खोल देता है. US बाजार में कई दूसरे देशों की कंपनियों भी खुद को लिस्ट करवाती है.

बीते वर्षों में अमेरिकी बाजार में भारतीय बाजार की तुलना में कम वोलैटिलिटी देखी गई है. काफी बार रिटर्न के मामले में भी US के बाजार का प्रदर्शन भारतीय बाजार से बेहतर रहा है. रुपये के डॉलर की तुलना में कमजोर होने का भी निवेशकों को फायदा मिल सकता है.

स्टार्टअप विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश हब होने के कारण US में अच्छी क्षमता वाली कंपनियों में शुरुआत में निवेश का मौका होता है. इसी तरह भारत या अन्य बाजारों में कई बड़ी कंपनियों की सब्सिडियरी लिस्ट होती है जबकि US बाजार में सीधे निवेश से ज्यादातर ऐसी कंपनियों में आसानी से निवेश कर सकते हैं.

कैसे कर सकते हैं निवेश शुरु?

US बाजार में निवेश के दो रास्ते हैं.

पहला तरीका सीधे निवेश का है. इसमें निवेशक भारतीय बाजार की तरह ही ब्रोकर के साथ रजिस्ट्रेशन कर स्टॉक्स में खरीद बिक्री कर सकता है. आजकल भारतीय ब्रोकरेज कंपनियां भी अमेरिकी ब्रोकरेज हाउस के साथ करार कर निवेशकों को आसान निवेश की सुविधा देती हैं. निवेशक जरूरी पैन कार्ड, घर के पते को सत्यापित करने वाले ID के साथ सीधे अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी के साथ भी बाजार में व्यापार के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.

दूसरा तरीका म्यूचुअल फंड के रास्ते निवेश का हो सकता है. भारत में अनेकों म्यूचुअल फंड US बाजार आधारित फंड चलाते हैं. ऐसे फंड या तो सीधा अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड शेयरों में निवेश करते हैं या ऐसे बाजारों से जुड़े दूसरे म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. इस प्रक्रिया में किसी अलग तरह के रजिस्ट्रेशन और बाजार के गहरी समझ की जरूरत नहीं है.

पैसों के लेनदेन की क्या है प्रक्रिया?

अमेरिकी बाजार में निवेश के लिए भारतीय करेंसी को US डॉलर विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश में बदलना होता है. फॉरेन एक्सचेंज संबंधी गतिविधि होने के कारण यहां RBI के लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के नियमों का पालन जरूरी है. नियमों के तहत एक व्यक्ति बिना विशेष अनुमति के एक वित्तीय वर्ष में 2,50,000 डॉलर यानी करीब 1 करोड़ 80 लाख रूपये भारतीय सीमा के बाहर निवेश कर सकता है.

किसी भी बाजार में निवेश से बनाए पैसे पर भारत सरकार टैक्स लगाती है. नियमों के अनुसार अवधि के मुताबिक शार्ट या लांग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगाया जा सकता है. हालांकि डिविडेंड पर टैक्स US गवर्नमेंट लगाती है.

निवेश से पहले किन बातों को समझना जरूरी?

US या अन्य विदेशी बाजारों में निवेश से पहले इन्वेस्टमेंट से जुड़े विभिन्न तरह की फीस और चार्ज को समझना काफी जरूरी है. रुपये को डॉलर में कन्वर्ट करने की प्रक्रिया से लेकर म्यूचुअल फंड द्वारा चार्ज की जाने वाली एक्स्ट्रा फीस कमाई पर असर डाल सकती है. ब्रोकरेज कंपनियां भी स्पेशल दरों पर ब्रोकरेज चार्ज करती है. ऐसे में बेहतर है कि शार्ट टर्म के लिए और ज्यादा समझ के बिना निवेश ना करें. लंबे समय के निवेश ज्यादा रिटर्न दिला सकता है. ज्यादा रिस्क से बचने के लिए इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड में निवेश बेहतर हो सकता है.

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